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स्वपार्जित और पैतृक संपतिमें बेटियोका क्या है अधिकार -The right of daugh...
जानिए कब बेटियों को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलता? क्या हैं प्रावधान
बेटियों का संपत्ति में हिस्से को लेकर हमेशा से विवाद रहा है। यह भ्रामक मुद्दा भी रहा है कि किसी बेटी को संपत्ति में कितना अधिकार मिलता है। कहीं लोग कहते हैं बेटी को बेटे से कम अधिकार है, कहीं कहा जाता है बेटी को कुछ अधिकार नहीं है और कहीं कहा जाता है बेटी को समानता के अधिकार है। समाज में अलग-अलग तरह की भ्रांतियां है जो बेटियों के पिता की संपत्ति में हिस्से को लेकर चलती रहती है। इसकी प्रमुख वजह कानून की जानकारी नहीं होना है।
वर्तमान भारत में बेटियों को संपत्ति में कितना अधिकार है और कब बेटियों को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलता है इसके संबंध में स्पष्ट कानून है।कहीं भी कोई भी भ्रम जैसी स्थिति नहीं है, आज की तारीख में तो सब कुछ स्पष्ट हो चुका है।
हमारे देश में संपत्ति के विभाजन को लेकर अलग-अलग कानून है। यह कानून सभी धर्मों के कानून है।इन कानूनों में कुछ कानून पार्लियामेंट के बनाए हुए भी है जैसे भारत के हिंदुओं के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 है। मुसलमानों के लिए उनका पर्सनल लॉ है, ऐसे ही कानून ईसाइयों के लिए भी हैं।
इन्हीं कानूनों के साथ ऐसे भी कुछ कानून है जो सभी धर्मों पर एक जैसे लागू होते हैं जैसे भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925। यह कानून सभी भारतीयों पर धर्मनिरपेक्ष रूप से लागू होता है। न्यायालय इस अधिनियम की सहायता अनेक मामलों में लेती है।
इन सभी कानूनों से किसी भी व्यक्ति के संपत्ति में अधिकार तय होते हैं पर यह ध्यान देना चाहिए कि कोई भी ऐसा कानून जो संविधान में दिए गए मूल अधिकारों से विपरीत जाता है तब उस कानून को न्यायालय द्वारा माना नहीं जाता है क्योंकि न्यायालय का ऐसा मानना होता है कि किसी भी ऐसे कानून को नहीं माना जाए जो मूल अधिकारों के विपरीत जा रहा है।
भारत में अगर मोटे तौर पर देखें तो संपत्ति दो प्रकार की होती है। एक वह संपत्ति होती है जो व्यक्ति ने स्वयं अर्जित की है और दूसरी वह संपत्ति होती है जो किसी व्यक्ति की पैतृक संपत्ति है।
पैतृक संपत्ति उसे कहा जाता है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। आमतौर पर शहरी अमीर लोगों के पास ऐसी पैतृक संपत्ति होती है जो किसी एक ही स्थान पर अनेक वर्षों से रहते आ रहे हैं। ऐसी संपत्ति हालांकि आज के समय में बहुत कम है पर फिर भी इस पक्ष को लेकर चलना चाहिए।
स्वयं द्वारा अर्जित संपत्ति एक साधारण विषय है। कोई भी ऐसी संपत्ति जो किसी व्यक्ति ने स्वयं से अर्जित की है उसे स्वयं द्वारा संपत्ति कहा जाता है। स्वयं द्वारा अर्जित संपत्ति भले ही किसी व्यक्ति ने खरीदी हो उसे दान में मिली हो या फिर किसी व्यक्ति के हक त्याग करने के परिणाम स्वरूप मिली हो, किसी पुरस्कार में मिली हो, यह सभी संपत्ति स्वयं अर्जित संपत्ति कहा जाता है।
सारी कहानी इन दो संपत्तियों के बीच ही चलती है। पैतृक संपत्ति और स्वयं द्वारा अर्जित संपत्ति। जब भी कोई व्यक्ति संपत्ति स्वयं से अर्जित करता है तब उस व्यक्ति के पास अनन्य अधिकार होता है कि वे अपनी संपत्ति के संबंध में कोई भी फैसला लिए ले।
इसका उल्लेख भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, संपत्ति अंतरण अधिनियम में मिलता है। किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति के संबंध में फैसला लेने की पूर्ण स्वतंत्रता है। ऐसा फैसला लेने के लिए कोई भी व्यक्ति उसे बाध्य नहीं कर सकता है अब भले ही उसके बच्चे ही क्यों न हो।
समाज में कुछ ऐसा भी भ्रम देखने को मिलता है कि बच्चों को लगता है वह पिता को उसकी संपत्ति बेचने से रोक सकते हैं जबकि यह बात बिल्कुल गलत है एक बाप अपनी संपत्ति को कहीं भी बेच सकता है।कुछ संपत्ति पर बच्चों का कोई भी अधिकार नहीं होता।
जब भी कोई व्यक्ति अपने जीवित रहते हुए स्वयं द्वारा अर्जित की गई संपत्ति के पक्ष में कोई फैसला लिए लेता है जैसे उसे दान दे दे, बेच दे या उसके संबंध में कोई हक त्याग कर दें या फिर कोई अन्य व्यवस्था करते हैं तब कोई बेटा या बेटी किसी प्रकार का क्लेम अपने पिता की संपत्ति के बारे में नहीं ला सकते।
कोई व्यक्ति भले ही अपने जीवित रहते हुए अपनी स्वयं द्वारा अर्जित की गई संपत्ति के बारे में कहीं कोई वसीयत कर दें इसके संबंध में भी वह व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वतंत्र है। वह जिसे चाहे जहां चाहे वसीयत कर सकता है हालांकि बच्चे ऐसी वसीयत को कोर्ट में चैलेंज दे सकते हैं और उस वसीयत के अवैध होने के बारे में आरोप लगा सकते हैं पर अगर जांच में यह पाया गया कि वसीयत वैध है तब बच्चे मुकदमा हार जाते हैं।
कब है बेटियों को पिता की संपत्ति में अधिकार
एक पिता की स्वयं द्वारा अर्जित की गई संपत्ति में बेटी और बेटों को उसके मरने के बाद ही अधिकार मिलता है। ऐसा व्यक्ति बगैर कोई फैसला किए हुए मर जाता है तब अगर किसी व्यक्ति ने कोई फैसला कर दिया है ऐसी स्थिति में तो बेटा और बेटियों को अधिकार है ही नहीं पर अगर कोई व्यक्ति बगैर फैसला किए मर जाता है तब बेटे और बेटियों को अधिकार मिल जाता है।
हिंदुओं के मामले में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम लागू हो जाता है और मुसलमानों के मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू हो जाता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में बेटे और बेटी को बराबर का अधिकारी माना है। कोई भी संपत्ति में जितना अधिकार बेटे को मिलता है उतना ही बेटी को मिलता है।
बेटा यह पक्ष नहीं ले सकता है कि बेटी की शादी हो गई है उसे उसकी पति की संपत्ति में अधिकार मिल गया है यह बात कोई भी बात बेटा नहीं बोल सकता। बेटी स्पष्ट रूप से पिता की अर्जित की गई संपत्ति में दावा कर सकती है अगर उसके पिता ने संपत्ति के बारे में कोई व्यवस्था नहीं की और उसकी मृत्यु हो जाती है।
न्यायालय में यह साबित हो जाने पर कि संपत्ति उस व्यक्ति की स्वयं द्वारा अर्जित थी तब बेटी को बराबर का हिस्सा संपत्ति में दिया जाता है और ऐसी संपत्ति बेटी को उत्तराधिकार में मिली संपत्ति मानी जाती है।फिर वह संपत्ति की स्वामी बन जाती है और अपनी संपत्ति के बारे में जैसा चाहे वैसा फैसला लें।
मुसलमानों के मामले में स्थिति थोड़ी सी भिन्न है, यहां पर बेटी को बेटे से थोड़ा अधिकार कम है पर आजकल न्यायालय इस अवधारणा को नहीं मान रही है और मुस्लिम पर्सनल लॉ के मामले में भी भारत का कानून भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम को लागू कर बेटी को बराबरी का अधिकार दिलवाया जाता है। पिता द्वारा अर्जित की गई संपत्ति में बेटी को बराबरी का उत्तराधिकार मिल जाता है भले ही वे मुसलमान है।
पैतृक संपत्ति और बेटियों का अधिकार
पैतृक संपत्ति के मामले में थोड़ी सी स्थिति भिन्न है। पैतृक संपत्ति पूर्वजों से चली आ रही संपत्ति है। बेटियों का दूसरी जगह विवाह हो जाता है ऐसी स्थिति में उनका अधिकार थोड़ा सा कम हो जाता है। अगर कोई रिश्ता बेटी की तरफ से है तब उसको अधिकार कम मिलते हैं और एक समय बाद बेटियों की तरफ से रिश्ते के अधिकार तो पैतृक संपत्ति के मामले में लगभग समाप्त ही हो जाते हैं।
पर 2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में कुछ परिवर्तन किए गए और अब एक बेटी को भी पैतृक संपत्ति में लगभग लगभग बेटे की तरह ही अधिकार प्राप्त है।
9 सितंबर, 2005 को, 1956 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में एक संशोधन, जो मूल रूप से महिलाओं को पैतृक संपत्ति के वारिस के अधिकार से वंचित करता था, अब एक हिंदू महिला या लड़की को अपने पुरुष रिश्तेदारों के साथ समान पैतृक संपत्ति का अधिकार होगा।
पैतृक संपत्ति के मामले में भी उसे बेटे से कहीं भी कम नहीं आंका जाएगा भले ही उसकी कहीं भी शादी हुई हो, कितने भी समय पहले हुई हो या फिर वह कोई भी पीढ़ी की क्यों न हो।
बेटियों को कब नहीं मिलता है उत्तराधिकार
कुछ परिस्थितियां ऐसी भी है जब बेटियों को संपत्ति में उत्तराधिकार नहीं मिलता है। जैसे कि कोई बेटी अपने को उत्तराधिकार में मिले हक को त्याग कर देती है तब उसे संपत्ति में किसी प्रकार का अधिकार नहीं मिलता। अब भले ही ऐसी संपत्ति उसके पिता की स्वयं अर्जित संपत्ति हो या फिर उसके पिता को पृथक रूप से मिली संपत्ति हो।
अगर बेटी में अपने हिस्से का त्याग कर दिया है और किसी पक्षकार के पक्ष में रिलीज डीड लिख दी है और उस रिलीज डीड को रजिस्टर्ड करवा लिया गया है तब बेटी किसी भी अधिकार को क्लेम नहीं कर सकती है।
जब बाप बेटों को वसीयत कर दे
अगर बाप स्वयं द्वारा अर्जित संपत्ति की वसीयत बेटों के पक्ष में लिख दे और बेटियों को पूर्ण रूप से खारिज कर दे ऐसी वसीयत को रजिस्टर्ड भी करवा लिया जाए तब बाप के मरने के बाद बेटियों को संपत्ति में किसी भी प्रकार का कोई अधिकार नहीं होता है। फिर वे अपनी संपत्ति के संबंध में कोई भी अधिकार की मांग न्यायालय में जाकर नहीं कर सकती हैं क्योंकि पिता ने ही उन को बेदखल कर दिया है और संपत्ति पिता की स्वयं द्वारा अर्जित थी।
यहां पर यह विशेष रुप से ध्यान देना चाहिए कि पिता स्वयं द्वारा अर्जित संपत्ति के संबंध में तो बेटों के पक्ष में वसीयत कर सकता है पर वह कोई भी वसीयत पैतृक संपत्ति के संबंध में नहीं कर सकता क्योंकि पैतृक संपत्ति उसे अपने पूर्वजों से मिली है। संपत्ति में उसकी बेटी का भी अधिकार है वह व्यक्ति अपनी बेटी को अधिकार से वंचित नहीं कर सकता।
इन सब बातों के बाद कुछ ऐसी बातें समाज में चलती है कि किसी व्यक्ति के कहीं विरोध के बाद भी शादी कर लेने पर संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलता है यह बात निराधार है। कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति से शादी कर ले तो उसका संपत्ति में अधिकार इस बात से समाप्त नहीं हो जाता। कोई व्यक्ति कोई बुरा काम कर ले उससे भी उसका संपत्ति में अधिकार समाप्त नहीं हो जाता।
कोई व्यक्ति किसी अपराध में सम्मिलित रहे तब भी उस व्यक्ति का संपत्ति में अधिकार समाप्त नहीं हो जाता है भले ही किसी व्यक्ति को अदालत किसी मामले में दोषसिद्ध कर दें तब भी उस व्यक्ति का अधिकार किसी संपत्ति में समाप्त नहीं होता है। यह सब भ्रांतियां हैं जो समाज में चलती रहती है।
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